राष्ट्रपति मुर्मू ने 15 विषयों पर सुप्रीम कोर्ट से मांगी राय, जानें क्या है समयसीमा तय करने का मामला?

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों और राष्ट्रपति की विधेयकों को मंजूरी देने की समय सीमा तय कर दी है। इस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने 14 सवाल पूछकर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है।

राष्‍ट्रपति और राज्‍यपालों के लिए विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने की समय-सीमा तय करने का मामला बढ़ता जा रहा है। समय सीमा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अब राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रिएक्ट किया है। सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल 2025 के फैसले पर राष्‍ट्रपति मुर्मू ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे हैं।

राष्‍ट्रपति ने इस फैसले को संवैधानिक मूल्‍यों और व्‍यवस्‍थाओं के विपरीत होने के साथ-साथ संवैधानिक सीमाओं का ‘अतिक्रमण’ भी बताया है। राष्‍ट्रपति मुर्मू ने संविधान के अनुच्‍छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से 14 संवैधानिक प्रश्‍नों पर राय मांगी है। संविधान का यह प्रावधान बहुत कम इस्तेमाल होता है, लेकिन केंद्र सरकार और राष्ट्रपति ने इसे इसलिए चुना, क्योंकि उन्हें लगता है कि पुर्नविचार याचिका पर सकारात्मक परिणाम की उम्मीद कम है।

राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से इन 14 सवालों पर राय मांगी है…

1. जब राज्यपाल के सामने भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत कोई विधेयक प्रस्तुत किया जाता है तो उनके सामने संवैधानिक विकल्प क्या हैं?

2. क्या राज्यपाल भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत किसी विधेयक को प्रस्तुत किए जाने पर अपने पास उपलब्ध सभी विकल्पों का प्रयोग करते समय मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सहायता और सलाह के लिए बाध्य है?

3. क्या राज्यपाल द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विवेक का प्रयोग किया जाना न्यायोचित है?

4. क्या भारत के संविधान का अनुच्छेद 361 भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के कार्यों के संबंध में न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है?

5. संवैधानिक रूप से निर्धारित समय सीमा और राज्यपाल द्वारा शक्तियों के प्रयोग के तरीके के अभाव में क्या राज्यपाल द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत सभी शक्तियों के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय सीमाएं लगाई जा सकती हैं और प्रयोग के तरीके को निर्धारित किया जा सकता है?

6. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक विवेक का प्रयोग किया जाना न्यायोचित है?

7. राष्ट्रपति की शक्तियों को नियंत्रित करने वाली संवैधानिक योजना के प्रकाश में क्या राष्ट्रपति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत संदर्भ के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय की सलाह लेने और राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की सहमति के लिए विधेयक को सुरक्षित रखने या अन्यथा सर्वोच्च न्यायालय की राय लेने की आवश्यकता है?

8. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 और अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय कानून के लागू होने से पहले के चरण में न्यायोचित हैं?

9. क्या न्यायालयों के लिए किसी विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी विषय-वस्तु पर न्यायिक निर्णय लेना स्वीकार्य है?

10. क्या संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग और राष्ट्रपति/राज्यपाल के आदेशों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत किसी भी तरह से प्रतिस्थापित किया जा सकता है?

11. क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल की सहमति के बिना लागू कानून है?

12. भारत के संविधान के अनुच्छेद 145(3) के प्रावधान के मद्देनजर क्या माननीय न्यायालय की किसी भी पीठ के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह पहले यह तय करे कि उसके समक्ष कार्यवाही में शामिल प्रश्न ऐसी प्रकृति का है, जिसमें संविधान की व्याख्या के रूप में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं। इसे कम से कम 5 न्यायाधीशों की पीठ को संदर्भित करे?

13. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां प्रक्रियात्मक कानून के मामलों तक सीमित हैं या भारत के संविधान का अनुच्छेद 142 ऐसे निर्देश जारी करने/आदेश पारित करने तक विस्तारित है ,जो संविधान या लागू कानून के मौजूदा मूल या प्रक्रियात्मक प्रावधानों के विपरीत या असंगत हैं?

14. . क्या संविधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत मुकदमे को छोड़कर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के किसी अन्य अधिकार क्षेत्र को रोकता है?

15. सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा था कि यदि कोई विधेयक लंबे समय तक राज्‍यपाल के पास लंबित है तो उसे ‘मंजूरी प्राप्‍त’ माना जाए। राष्‍ट्रपति ने इस पर आपत्ति जताते हुए पूछा है कि जब देश का संविधान राष्‍ट्रपति को किसी विधेयक पर फैसले लेने का विवेकाधिकार देता है तो फिर सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया में हस्‍तक्षेप कैसे कर सकता है।